रायगढ़, बड़े बुजुर्गों से हम बचपन से आज तक एक तथाकथित सच्चाई कहें या कहानी सुनते आए हैं , की पुराने जमाने में एक-एक परिवार के पास अपना रिहायशी क्षेत्र दो एकड़ से 3 एकड़ में या इससे भी अधिक फैला रहता था किंतु जैसे-जैसे परिवार बढ़ता गया एकड़ की जमीन सिमटती गई और एकड़ कब डिसमिल में बदल गई पता ही नहीं चला, कमो बेस आज हमारे रायगढ़ का भी यही हाल है। आज से 40 साल पहले जब हम स्कूल जाया करते थे तो घर से लेकर स्कूल तक जितने भी लोग दिखते थे उनमें से 80% लोगों से हमारा या तो सीधा संबंध हुआ करता था या जान पहचान के होते थे, किंतु हमारे देखते-देखते इतना परिवर्तन हुआ कि आज जब हम घर से निकलते हैं तो लगभग 90 से 95% लोग हमारे परिचय के नहीं होते। इतनी आबादी बढ़ी, और आबादी भी केवल हम मूल निवासियों की होती तो कोई बात नहीं थी, किंतु इन 40 वर्षों में सैकड़ो प्लांट स्थापित होने की वजह से रायगढ़ की आबादी दिन प्रतिदिन आसमान को छूने लगी और आज रायगढ़ की स्थिति ऐसी बन गई है की आजादी और स्वच्छता से हम सांस लेने की स्थिति में भी नहीं है। गाड़ियों का रेलमपेल इतना की सड़कों पर चलना किसी टास्क से कम नहीं, यदि गाड़ी लेकर निकले तो हर सड़क पर इतना जाम की गाड़ियों का 30% तेल तो जाम के कारण जल जाता है और गंतव्य तक समय पर नहीं पहुंच पाए वह अलग। अब ईश्वर का दिया हुआ भू भाग तो लचीली नहीं है की जिसे हम जब चाहे कम कर ले और जब चाहे उसे फैला दे। लेकिन हां , विकल्प तो हम ढूंढ ही सकते हैं, और ऐसा भी नहीं है कि आज तक किसी ने रायगढ़ को सजाने और संवारने का प्रयास नहीं किया। वर्षों पहले आए थे एक प्रशासनिक अधिकारी, जिनके जुनूनी आंख में रायगढ़ के लिए एक शानदार मॉडल था, दिल में एक जज्बा था और भय और चाटुकारिता से कोसों दूर थे। किंतु आज के समय में ऐसे बिरले व्यक्ति जल्द ही कुछ लोगों के आंखों की किरकिरी बन जाते हैं। और उसी का शिकार रायगढ़ का वह “सौभाग्य” भी हुआ।
कहते हैं ना की अपना भाग्य बदलने के लिए ईश्वर भी कई बार मौका देते हैं, और वही हुआ। आज फिर ईश्वर ने रायगढ़ को अपना सौभाग्य बनाने का मौका, एक कम उम्र का युवा जिसकी आंखों में भूगोल का परिपक्व नक्शा स्थापित हो, डर नाम की चीज उसके आसपास भी मंडराने का नाम ना ले, और प्रशासन के साथ-साथ शासन की भी पूरी शक्ति अपने अंदर समेटे हुए हो ऐसे युवा रायगढ़ को सजाने और संवारने में अपने दिन का चैन और रातों की नींद पूरी ऊर्जा से लगा दे । मुझे इस बात का भान है, कि उन्हें इस बात का ज्ञान है। कि इतने से ही काम नहीं चलने वाला है, आज समय आ गया है की विकास के उस योद्धा को अब नए रायगढ़ का भी सपना देखना विकास के साथ-साथ आवश्यक हो गया है। क्योंकि साधन सीमित है और जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, तो ऐसी स्थिति में नए रायगढ़ के बसाहट के अतिरिक्त कोई और विकल्प ही नहीं है। और यही रायगढ़ वासियों के लिए सबसे बड़ा वरदान होगा । और आपके लिए यही कहूंगा, कि जब विकास पुरुष में नाम लिखाना ही है, तो लिखावट भी ऐसी होनी चाहिए जो आसानी से धुंधला ना हो, और आपकी और रायगढ़ की आने वाली सात पीढ़ी भी उस लिखावट को आसानी से पढ़ कर आप पर गर्व महसूस कर सके।
विमल चौधरी
समीक्षक
एवं सामाजिक कार्यकर्ता