
रायगढ़, 6 सितंबर: पश्चिमी ओडिशा का प्राचीन कृषि पर्व नुआखाई 6 सितंबर को रायगढ़ के श्रेष्ठा होटल में भव्यता और सांस्कृतिक गौरव के साथ मनाया गया। सैकड़ों लोग इस अवसर पर एकत्र हुए और शहर में पहली बार आयोजित नुआखाई भेटघाट का हिस्सा बने, जिसका आयोजन ओड़िया संस्कृतिका सेवा समिति ने किया।
नुआखाई शब्द का शाब्दिक अर्थ है नुआ (नया) और खाई (भोजन)। यह पर्व नई फसल के पहले अन्न को देवी को अर्पित करने और फिर परिवार व समुदाय के साथ मिलकर उसे ग्रहण करने की परंपरा का प्रतीक है। सदियों से यह त्योहार पश्चिमी ओडिशा के किसानों के लिए प्रकृति और देवताओं के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर रहा है, विशेषकर संबलपुर, बलांगीर, बरगढ़, कालाहांडी और नुआपाड़ा क्षेत्रों में।
रायगढ़ में आयोजित इस उत्सव ने न केवल इस सांस्कृतिक परंपरा को जीवित किया, बल्कि वहां बस चुके ओड़िया समाज को भी एक सूत्र में बाँध दिया। कार्यक्रम में नृत्य, संगीत, पारंपरिक व्यंजन और सामूहिक उल्लास शामिल रहे, जिसने पूरे माहौल को हर्ष और आत्मीयता से भर दिया।
सन 2006 में स्थापित ओड़िया संस्कृतिका सेवा समिति लंबे समय से ओड़िया संस्कृति और परंपराओं को ओडिशा से बाहर भी जीवित रखने के लिए कार्य कर रही है। समिति ने वर्षों से उत्कल दिवस, राजा, कार्तिक पूर्णिमा, गणेश पूजा जैसे प्रमुख त्योहारों का आयोजन किया है। इसके साथ ही समिति ने वृक्षारोपण अभियान, वार्षिक पिकनिक व नववर्ष उत्सव, और मधुसूदन जयंती जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं। सांस्कृतिक गतिविधियों के अलावा समिति ने स्वास्थ्य शिविर, जागरूकता अभियान और पर्यावरण संरक्षण जैसे सामाजिक कार्यों में भी अहम भूमिका निभाई है।
रायगढ़ का नुआखाई भेटघाट समिति की सांस्कृतिक यात्रा का एक और ऐतिहासिक पड़ाव साबित हुआ। यह आयोजन श्री सिद्धांत मोहंती (अध्यक्ष), डॉ. निर्मल कु. मलिक (सचिव) के नेतृत्व में और श्री लोकनाथ देव, श्री मनोरंजन परिड़ा, श्री गंगेश पाणिग्राही, श्री सुनील मोहंती, श्री अश्विनी कु. मोहंती, श्री अश्विनी पांडा , श्री सत्य ब्रत साहू, श्री तपन पांडा, श्री दीपक दास, श्री देबब्रत साहू, श्री आदित्य प्रधान, श्री देबरंजन पटनायक, श्री किशोर साहू, श्री ब्रज किशोर सामल, श्री रतिकांत परिड़ा, श्री सौम्य परिड़ा, श्रीमती मंजुबाला महापात्र, श्री दाम्बोदर साव,श्री सरबेश्वर डोरा और अन्य के प्रयासों से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में यह आयोजन इस बात का जीवंत प्रतीक बना कि अपनी मातृभूमि से दूर रहकर भी ओड़िया समाज ने गर्व, एकता और उल्लास के साथ अपनी परंपराओं को जीवित रखा है।