आज हास्य कविता के आकाश का एक चमकता सितारा हमेशा के लिए अस्त हो गया। पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे जी का निधन न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सम्पूर्ण हिंदी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है।
मैं, दीपक आचार्य — एक कलाकार, एक भावप्रेमी, एक कवि-प्रेमी हृदय से आज हास्य रस के महर्षि को नमन करता हूँ।
डॉ. दुबे जी की कविता केवल हँसी नहीं देती थी, वह हँसी में छिपा एक सच बोलती थी। वे शब्दों से मुस्कान भी खींचते थे और आत्मा को झकझोरते भी थे। मंच हो या माइक, देश हो या विदेश — उनकी वाणी में एक जादू था, जो हृदय तक पहुँचता था।
मैंने उन्हें मंच पर देखा, सुना और समझा — और आज जब वे नहीं हैं, तो लगता है जैसे हास्य मंच सूना हो गया है।
रायगढ़ की मिट्टी, जिसे कला और संस्कृति की नगरी कहा जाता है, आज शोक में डूबी है। हम कलाकारों ने एक आदर्श, एक प्रेरणा को खो दिया है।
उनकी वाणी तो अब नहीं गूंजेगी, लेकिन उनके शब्द, उनकी शैली, और उनका हास्य अमर रहेगा।
ईश्वर से प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें।